भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र का भरोसा क्या पल का साथ हो जाए / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
उम्र का भरोसा क्या पल का साथ हो जाए
एक बार अकेले में उससे बात हो जाए
दिल की गुंग सरशारी उसको जीत ले लेकिन
अर्ज़ हाल करने में एहतियात हो जाए
ऐसा क्यों कि जाने से सिर्फ़ एक इन्साँ के
सारी ज़िन्दगानी ही बेसबात हो जाए
याद करता जाए दिल और खिलता जाए दिल
ओस की तरह कोई पात-पात हो जाए
सब चराग़ गुल करके उसका हाथ थामा था
क्या क़ुसूर उसका जो बन में रात हो जाए
एक बार खेले तो वो मिरी तरह और फिर
जीत ले वो हर बाज़ी मुझको मात हो जाए
रात हो पड़ाव की फिर भी जागिये वरना
आप सोते रह जाएँ और घात हो जाए