भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र की अव्वली अज़ानों में / हम्माद नियाज़ी
Kavita Kosh से
उम्र की अव्वली अज़ानों में
चैन था दिल के कार-ख़ानों में
लहलहाते थे खेत सीन के
बाँसुरी बज रही थी कानों में
बाँसुरी जिस की तान मिलती थी
ख़्वाब के बे-नुमू जहानों में
ख़्वाब जिन के निशान मिलना थे
आने वाले कई ज़मानों में
मुस्कुराहट चराग़ ऐसी थी
रौशनी खिल उठी मकानों में
रौशनी जिस का दिल धड़कता था
दूर सहरा के सारबानों में
वो किसी बाग़ जैसी हैरानी
अब अगर है तो दास्तानों में