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उम्र भर हम भूलाते रहे / सुमन पोखरेल

कदम पे कदम यूँ मिलाते रहे
तेरे शान खूब हम बढाते रहे
       
हमे रात दिन याद आते रहे
जिन्हे उम्र भर हम भूलाते रहे

तजरुबा-ए-मोहब्बत न था दोनो को
हम देखते रहे, वो शरमाते रहे
       
हकिकत में खुसियाँ न थी वस्ल की
तसब्बुर में उन्हे पास लाते रहे
                          
मेरा जिक्र जब भी हुवा बज्म में
हया से वो सुर्ख चेहरा छुपाते रहे

सिकस्ती के बाद किया काम नयाँ
मुकद्दर को यूँ हम जगाते रहे

देता रहा दिल तुम उन को सुमन !
जो जलाते रहे, बुझाते रहे