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उम्र से बड़ी लगी / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
दर्द दो नया कोई, फिर कोई अभाव दो।
ठहरे हुए प्यार को, कोई तो प्रभाव दो।
हम भरे-भरे रहे, तुमसे बस इसीलिए,
शून्यता न दो हमें, सारी उम्र के लिए,
हम खड़े रहे जहाँ, रास्ते न थे कोई,
मन की दबी बर्फ से, राह थी ढंकी हुई।
अहं पिघलने लगे, मोम-सा गलने लगे,
खोल कर हथेलियाँ, फिर से पहली छांव दो।
उम्र से बड़ी लगी ठहरी-ठहरी ज़िन्दगी,
घेर कर चली हमें, रेत से भरी नदी।
सांस-से सिल रहे, दो अकेले सिलसिले,
अकेले ही दिन उगे, अकेले ही दिन ढले।
चलो तो तुम दो कदम, कुछ तो दूरियाँ हो कम,
बांहों के निर्वाह को, बांहों से निभाओ तो।
दर्द दो नया कोई, फिर कोई अभाव दो।
ठहरे हुए प्यार को, कोई तो प्रभाव दो।