उम्र
पकड़ती है — कमर
फिसलती हुई 
खेलती है — पीठ के मैदान में 
और धँसा देती है — देह 
बुढ़ापा 
बैठता है — कंधे पर 
पकड़ता है गला 
और चेहरे को कसता है 
अपने पंजे के भीतर 
उम्र का शिकंजा 
अपनी रगड़ से चेहरे पर 
बनाता है — बुढ़ापे का जाल 
खुरचता है यौवन की चमक 
और चिपकाता है — झुर्रियों का जाल 
जिसमें समेटकर 
ले जाती है — मृत्यु 
उसे 
सबसे बेख़बर लोक में ।