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उर्दू कहेंगे लोग, ना हिन्दी कहेंगे लोग / श्याम कश्यप बेचैन

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उर्दू कहेंगे लोग, ना हिन्दी कहेंगे लोग
मेरी ग़ज़ल को सिर्फ़ ग़ज़ल ही कहेंगे लोग

मिट जाएँगे जे़हन से जुबाँ के तमाम भेद
दिल की सुनेंगे लोग और दिल की कहेगें लोग

सचमुच तुम्हें लगेगा कि मैंने ही कहा था
बातें बना बना के कुछ ऐसी कहेंगे लोग

पागल समझ के जिसका उड़ाते हैं सब मज़ाक
मरने के बाद कल उसे सूफ़ी कहेंगे लोग

ख़ुद क्यों कहूँ कि मैं हूँ एक शायर अज़ीमतर
पढ़-पढ़ के मेरे शेर को खुद ही कहेंगे लोग