उल्फत -ए-रुसवाई  में  जो  मिली  जुदाई ,
तन्हाई  में  जीने  की  आदत  सी  हो  गयी ...............!
गुजरे  हैं  जिन्दगी  के  उस  मुकाम  से  ,
हर  गम  पीने  की  आदत  सी  हो  गयी...!
अब  तो  बस  दिए  हुए  उन  जख्मों  को ,
यादों  में  सीने  की  आदत  सी  हो  गयी...!
खुद  मेरी  मंजिल  मालूम  नहीं  मुझे ,
भीड़  में  खो  जाने  की  आदत  सी  हो  गयी...!
ये  ज़िंदगी  तो  अब  मुकद्दर  बन  गयी ,
सजा -ए - मौत  पाने  की  आदत  सी हो गयी...!
सैयाद  तेरा  दाम  कितना  ही  नाजुक  हो ,
इस  में  फडफड़ाने   की  आदत  सी  हो  गयी...!
उल्फत -ए-रुसवाई में जो मिली जुदाई ,
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी...!