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उल्लू - 2 / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
एक खास बात से हम
उल्लू के पक्ष में हो सकते हैं
अपनी काली, उजली, नीली, और भूरी आँखों से
हम नहीं देख पाते बहुत कुछ
दिन के प्रकाश में
वहीं पर उल्लू
देख लेता है सबकुछ
कर लेता है सच का मुआयना
अपनी रक्ताभ आँखों से
चीरकर गहन अंधकार रात की