उसका कहना / मनमोहन
उस दिन वह कुछ कहती थी
विद्वत मंदली में दो मिनट का समय पाकर
उसकी डरी हुई आँखें
सभागार में चारों ओर फिरती थीं
वह बोलती थी जैसे
जल्दी से छिप जाना चाहती हो
वाक्य अधूरे थे और शब्द अस्पष्ट
उनमें असमंजस था और
एक पुरानी थकान का बोझ था
जो बोले जाने से पहले हर बार उतर आता था
उसके शब्द किसी और ही गूढ़ भाषा के शब्द थे
लेकिन कोई ज़रूरी बात थी जिसे वही कह सकती थी
इतना तय था
कि धारावाहिक मुख्य-विमर्श के किले में
दाख़िल होने का कोई रास्ता दो मिनट में ढूंढ़ना
उसके वश में नहीं था
विद्वत मंडली ने कुछ पल
इस अटपटे कौतुक का आनंद लिया
लेकिन दो मिनट होते न होते
सभा का धैर्य चुकने लगा
बुदबुद होने लगी
यहाँ तक कि चोटी के विद्वान महामना अध्यक्ष
जिनके चेहरे पर पहले कुछ पल
उदार वात्सल्य छलक आया था
अचानक विवर्ण हो गए और घड़ी देखने लगे
जब ढाई मिनट हुआ
उन्होंने घंटी बजाई
और समय-सीमा का ख्याल रखने का अनुरोध करते हुए
आगामी वक्ताओं को हिदायत दी
कि कृपया विषय से बाहर न जाएँ
और जो कुछ कहा जा चुका है
उसे न दोहराएँ