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उसका दु:ख / सरोज परमार
Kavita Kosh से
बच्चे की जलती बुझती आँखों में
नहीं हैं सपने
देर से लौटती थकी-माँदी
माँ का इन्तज़ार है.
उसे पूछने हैं कई सवाल
कहनी हैं कई छिटपुट बातें.
वो भी जानने लगा है
आँखें चुराकर घुस जाएगी चौके में माँ
वह निहारता रहेगा उसकी बाट
तब तक जब तक
आँखें भारी न हो जाएँ.
बच्चा नहीं कह पाता वो सब
जो सिर्फ़ उसे माँ से कहना है.
माँ समझती है दु:ख उसका
पर उसका दु:ख महीने के राशन
से उसे हल्का लगता है.