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उसकी ज़िद-4 / पवन करण

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अच्छा बताओ तो सही आज मैं इतनी ख़ुश क्यों हूँ ?
मैंने कहा — मुझे क्या पता इस बारे में
मैं किसी के मन की थोड़े ही जानता हूँ।

नहीं — उसने ठुनकते हुए कहा — बताओ
आज मैं इतनी ख़ुश क्यों हूँ ?
मेरे मन मे क्या है यह तुम क्यों नहीं जानते
फिर मेरे मन में क्या है, ये तुम नहीं जानोगे तो कौन जानेगा ?

मैंने कहा — अच्छा ठहरों, मैं अन्दाज लगाता हूँ ।
मैं देर तक सोचता रहा
जब कुछ समझ में नहीं आया तो हार मानते हुए
मैंने कहा उससे — नहीं यार, तुम्हारी ख़ुशी का कारण
नहीं ढ़ूँढ़ पा रहा हूँ मैं,
मगर तुम इस तरह खुश अच्छी लग रही हो मुझे ।

नहीं बताओ, आज क्या काण है जो इतनी ख़ुश हूँ मैं —
उसने मेरे काम में बाधा पहुँचाते हुए कहा ।
मैंने हल्का सा खीजते हुए जवाब दिया — क्या बताऊँ तुम्हें,
जब मुझे कुछ सूझ नहीं रहा तो,
होगा कोई कारण तुम्हारी खुशी का ।
— बड़े आए, कुछ सूझ नहीं रहा
होगा कोई कारण, कहने वाले
क्यों नहीं सूझ रहा तुम्हें कुछ
चलो मैं ही बताती हूँ तुम्हें
कोई कारण नहीं है मेरी ख़ुशी का, बस,
आज मैँ ख़ुश हूँ तो ख़ुश हूँ ।

— मगर मैं इतना जरूर चाहती हूँ कि तुम मेरी
आज की इस ख़ुशी को कोई नाम ज़रूर दो।