उसकी तस्वीर / राकेश रोहित
उसकी जितनी तस्वीरें हैं
उनमें वह स्टूडियो के झूठे दरवाज़े के पास खड़ी है
जिसके उस पार रास्ता नहीं है
या फिर वह एक सजीली मेज़ पर कुहनी रखे
टिका रही है हथेली पर अपने चेहरे को
सोच की मुद्रा में।
पास में बन्द स्टूडियो की दो-चार सीढ़ियाँ हैं
एक में वह सीढ़ियाँ चढ़कर
थोड़ा मुड़कर देख रही है
और समय फिर वहीं ठहरा हुआ है।
हर तस्वीर खिंचवाने के पीछे कितनी कवायदें होती थीं
उसने तय किया था वह एक दिन रोएगी
अपनी इन सारी तस्वीरों के साथ
जबकि सिर्फ़ साफ़ दिखता है स्टूडियो का नाम
अब भी आँखें भरी-भरी लगती हैं
उन श्वेत-श्याम तस्वीरों में!
अपनी पुरानी तस्वीरें देखकर वह
ख़ुद हैरान होती है
उसके पास नहीं है ऐसी तस्वीर
जिसमें उसके हाथ में फूल हो
और वह तितली के पीछे भाग रही हो!
पुरानी तस्वीरें देखते हुए
वह याद करती है अपनी पुरानी कविताएँ
जिसमें उसका अजाना बचपन छिपा है
कच्ची अमिया खाना उसे बहुत पसन्द था
पर हाथ में पत्थर उठाए उसकी कोई तस्वीर नहीं है।