Last modified on 19 सितम्बर 2016, at 00:06

उसकी मर्ज़ी का भी थोड़ा करना है / दीपक शर्मा 'दीप'

 
उसकी मर्ज़ी का भी थोड़ा करना है
अपनी मर्ज़ी से भी हमको लड़ना है

लुटने वाले लुटकर भी खुश बैठे हैं
लूट गया जो उसको काफ़ी भरना है

होना होगा,जो भी होगा, देखेंगे
इतना भी क्या यारो उससे डरना है

कितनी भी सूखी हो आँखें सदियों से
लेकिन इतना तय है उनमें झरना है

एक बार ही मर जाओ ना 'दीप' मियाँ
रोज़-रोज़ का मरना, कोई मरना है