भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी मर्ज़ी का भी थोड़ा करना है / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
उसकी मर्ज़ी का भी थोड़ा करना है
अपनी मर्ज़ी से भी हमको लड़ना है
लुटने वाले लुटकर भी खुश बैठे हैं
लूट गया जो उसको काफ़ी भरना है
होना होगा,जो भी होगा, देखेंगे
इतना भी क्या यारो उससे डरना है
कितनी भी सूखी हो आँखें सदियों से
लेकिन इतना तय है उनमें झरना है
एक बार ही मर जाओ ना 'दीप' मियाँ
रोज़-रोज़ का मरना, कोई मरना है