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उसकी रहमत का इक सहाब उतरे / ‘अना’ क़ासमी
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उसकी रहमत का इक सहाब उतरे
मेरे कांधों से फिर हिसाब उतरे
ख़ुद से पूछो तबाहियों का सबब
आसमानो से क्यों जवाब उतरे
चश्में-इक़रार की चमक मत पूछ
झील में जैसे माहताब उतरे
तेरी पाज़ेब की झनक गूँजी
ताक़े-निसियाँ से फिर रूबाब उतरे
इश्क़ शोला बजां हो सीना पर
मल्क-ए-हुस्न पर किताब उतरे
रौशनी शहरे-जाँ में फैले कुछ
ताल-ए-दिल पे आफ़ताब उतरे