भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसके अंदर छुपे हर इक हुनर से वाकिफ़ हूँ / कुमार नयन
Kavita Kosh से
उसके अंदर छुपे हर इक हुनर से वाकिफ़ हूँ
जीत लेगा वो दिल उसके असर से वाकिफ़ हूँ।
वो समझदार है आखिर में मान जायेगा
नुक्ताचीनी से उसकी गर-मगर से वाकिफ़ हूँ।
जानलेवा हैं जां मेरी मगर नहीं लेंगे
अपने मैं दर्दे-दिल ज़ख़्मे-जिगर से वाकिफ़ हूँ।
सामने आऊं तो आऊं भी कैसे डरता हूँ
माँ क़सम आपके तीरे-नज़र से वाकिफ़ हूँ।
ठोकरें हर क़दम पे ही सलाम करती हैं
इश्क़ के शहर की हर रहगुज़र से वाकिफ़ हूँ।
मैं ज़रा देर से पहुंचूं तो ख़ूब चीखेंगे
मैं अपने घर के हर दीवारो-दर से वाकिफ़ हूँ।
लोग कितने खफ़ा हैं मुझसे ये न बतलाओ
इक ज़माने से मैं ऐसी ख़बर से वाकिफ़ हूँ।