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उसको क्या-क्या हुनर नहीं आता / मदन मोहन दानिश
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उसको क्या-क्या हुनर नहीं आता,
दर-ब-दर है, नज़र नहीं आता ।
जबसे दुनिया का सच खुला हम पर,
कोई झूठा नज़र नहीं आता ।
शेर कहना, उदास हो लेना,
ये हुनर भी अगर नहीं आता ?
सोचता हूँ, अब इस बुलंदी से,
काश जीना नज़र नहीं आता ।
कितने मौसम बदल गए दानिश,
आने वाला मगर नहीं आता ।