भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसने उल्टी सैण्डिल को सीधा किया / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
उसने उल्टी सेण्डिल को सीधा किया
कि इससे झगड़ा होता है
किनमें? पूछने पर वह चुप रही थी
आकाश में काँच के शिल्प की तरह टँगा
मूक चन्द्रमा इन्तज़ार करता है
फ़र्श पर अपने टूट कर गिरने की आवाज़ का
वह कमरे में उल्टे पड़े
एक जोड़ा एकान्त को
सीधा कर फ़र्श पर जमा देता है
कि वह आए और इन्हें पहिनकर चली जाए
उस ओर जहाँ से आते हुए
वह लगातार दिखती रही थी।