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उसूलों से बग़ावत कर रहे हो / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
उसूलों से बग़ावत कर रहे हो
ये तुम कैसी जसारत कर रहे हो
नहीं मालूम होता गुफ़्तगू से
रफ़ाक़त या अदावत कर रहे हो
मुझे हैरत है तुमको क्या हुआ है
जो रिश्तों की तिजारत कर रहे हो
नहीं बाक़ी है कोई मुद्दआ क्या
शहीदों पर सियासत कर रहे हो
बड़े नादान हो ‘अज्ञात’ तुम भी
मुक़द्दर से शिकायत कर रहे हो