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उसे किस बात की चिंता, उसे किस बात का डर है / राम नारायण मीणा "हलधर"
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उसे किस बात की चिंता, उसे किस बात का डर है
अब उसका पाँच-साला, देवता के पांवों पे सर है
तुम्हारे झूठ की इस कागज़ी कश्ती का क्या होगा
हमारे गाँव की सरहद पे, शोलों का समंदर है
हमें अब ज़लज़लों तूफान से भी, डर नहीं लगता
गगनचुम्बी इमारत है, न अपने पास छप्पर है
मैं किससे रास्ता पूछूँ, नया है शहर डरता हूँ
न जाने कौन रहजन है, न जाने कौन रहबर है
संभल के चल गली में रोज़ हमने हादसा देखा
इस अंधे मोड़ पे ही तो मेरे महबूब का घर है
तेरे दीवान में लफ्ज़-ए-अना शोभा नहीं देता
बड़ा शाइर है पर सरकार का छोटा सा नोकर है
हमारा बादलों से भी, भरोसा उठ गया 'हलधर'
मरुस्थल ही मरुस्थल है, यही अपना मुक़द्दर है