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उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा / कालिदास

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रक्‍ताशोकश्‍चलकिसलय: केसरश्‍चात्र कान्‍त:
     प्रत्‍यासन्‍नौ कुरबकवृतेर्माधवीमण्डपस्‍य।
एक: सख्‍यास्‍तव सह मया वामपादाभिलाषी
     काङ्क्षत्‍वन्‍यो वदनमदिरां दोहदच्‍छद्मनास्‍या:।।

उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा
हुआ मोतिये का मंडप है, जिसके पास एक
ओर चंचल पल्‍लवोंवाला लाल फूलों का
अशोक है और दूसरी ओर सुन्‍दर मौलसिरी
है। उनमें से पहला मेरी तरह की दोहद के
बहाने तुम्‍हारी सखी के बाएँ पैर का आघात
चाहता है, और दूसरा (बकुल) उसके मुख
से मदिरा की फुहार का इच्‍छुक है।