उस जगह क़ानून काला चल रहा है ।
तू उधर न जा ख़ुदा का वास्ता है ।
गोलियाँ ही फ़ऐसले करने लगीं,
शहर से इन्सानियत ही लापता है ।
उसके बारे में फ़क़त ये जानता हूँ,
दूर से वो शख़्स लगता देवता है ।
क्या बताएगा तुझे मंज़िलें तेरी,
कोई रहबर तो नहीं ये रास्ता है ।
जी रहा ’बल्ली’ कि जीना है मगर,
ज़िन्दगी में से बहुत-कुछ लापता है ।