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उस दिन जब जीवन के पथ में / जयशंकर प्रसाद

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उस दिन जब जीवन के पथ में,
        छिन्न पात्र ले कम्पित कर में ,
        मधु-भिक्षा की रटन अधर में ,
        इस अनजाने निकट नगर में ,
        आ पँहुचा था एक अकिंचन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
        लोगों की आँखे ललचाईं ,
        स्वयं मानने को कुछ आईं ,
        मधु सरिता उफनी अकुलाई ,
        देने को अपना संचित धन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
        फूलों ने पंखुरियाँ खोलीं ,
        आँखें करने लगी ठिठोली ;
        हृदयों ने न सम्भाली झोली ,
        लुटने लगे विकल पगन मन .
उस दिन जब जीवन के पथ में,
        छिन्न पात्र में था भर आता –
        वह रस बरबस था न समाता;
        स्वयं चकित सा समझ न पाता
        कहाँ छिपा था ऐसा मधुवन !
उस दिन जब जीवन के पथ में,
        मधु-मंगल की वर्षा होती,
        काँटों ने भी पहना मोती
        जिसे बटोर रही थी रोती-
        आशा, समझ मिला अपना धन .