भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस दृष्टि ने मुझे उठा लिया / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
उसने मुझे कुछ नहीं दिया
सिवाय उस दृष्टि के
जो किसी को नहीं मिली
मुझे मिली।
मैं कृतार्थ हो गया।
उस दृष्टि में वह मुझे मिली
और कहीं नहीं मिली।
शायद ही
कोई किसी को उस दृष्टि से देखता है
जिस दृष्टि से उसने मुझे देखा
और देखकर चली गई
(फिर) वापस न आने के लिए
मुझे भूल जाने के लिए
वह नहीं जानती
वह क्या कर गई
मुझे देखकर
कितना कल्याण कर गई
गिर गया था मैं
उस दृष्टि ने मुझे बचा लिया
मौत से बचा लिया।
रचनाकाल: २४-०९-१९६५