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उस रात की याद में डूबकर / प्रभात त्रिपाठी

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आज उस रात की याद में डूबकर
मैंने देखा अभी वो पुराना शहर

वो गली जिसमें बजती थी गीतों की धुन
वो गली जिसमें सोया था बचपन का डर
वो गली जिसके इक मोड़ पर एक दिन
छू गयी थी मुझे इक फिसलती नज़र

वो नज़र जिसकी जज़बात की नींव पर
बस गया मेरी चाहत का छोटा-सा घर
अपनी चाहत की ख़ातिर जिया और मरा
मेरा किस्सा है यारो यही मुख़्तसर