भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊंट ताऊ / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊँट ताऊ जी लटर-पटर
काँपै थोथनों पटर-पटर
जब अपनो मूं खोलै छै
बल-बल करी केॅ बोलै छै
मरूभूमि के छिकै जहाज
जहाँ छै अभियो होकरे राज
गेलै एक दिन ऊँट सहर
घुरतें होलै तीन पहर
भूख होकर जब जागेॅ लगलै
पेट में चूहा भागेॅ लगलै
खैलके एक दुकानों में
थेग न भेल जलपानों में
नस्ता, जना कि दूध में जोरन
ऊँट के मुँह जीरा के फोरन