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ऊधो मैं मूरख मतिमन्द / आनन्दी सहाय शुक्ल

ऊधो मैं मूरख मतिमन्द ।।
चन्द्रगुप्त चाणक्य नहीं जो खोद उखाडूँ नन्द ।।

धँसती नींव खिसकती ईंटे
प्रेत छाँह घर मेरा
चमगादड़ उल्लू साँपों का
इसमें सतत बसेरा
चीटी केंचुए खटमल मच्छर चौमुख मल की गन्द ।।

बन्द घेराव आग हड़तालें
आरक्षी का डण्डा
इतने डैनों सेवित पालित
लोकतन्त्र का अण्डा
हाथ पोलियो मारे मेरे कर न सके कुछ बन्द ।।

हिन्दू मानस मुद्रित अंकित
लेंगे प्रभु अवतार
दीनदयालु प्रगट हों जग में
दुःख करेंगे क्षार
तम के बादर पर्वत ऊपर लिखें किरन के छन्द ।।