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ऊपर उठी शाखाओं के पीछे / इला कुमार
Kavita Kosh से
ऊपर उठी शाखाओं के पीछे है
शाम का आसमान
लम्बी पूँछ वाली चिड़िया एक एक शाख
नीचे उतरती है
उसकी भंगिमा में है थोड़ी हिचकिचाहट
थोड़ा संकोच
वह धीमे से झुककर पत्तों के बीच
थोड़ा रस पीने की चेष्टा करती है
उसके पंखों की छुअन में छिपी है कोमलता
ख़ूब सारी कोमलता
इच्छा होती है कि आए वह यहाँ
कार की खिड़की के अन्दर
आकर बैठ जाए यहीं कहीं
छू लेने दे अपनी कोमल हिचकिची भंगिमा
मन की आकांक्षा आकाश की सतह पर
स्वयं को अंकित करने बढ़ चलती है।