ऋद्धि-पादकेर पाठ पढ़ौलनि स्वयं शिष्यकेँ गौतम बुद्ध
चारू चरण चारु सुविदित अछि अभ्यासब तनि क्रमशः शुद्ध
दोष-दुरितकेँ मनमे नहि प्रवेश करबहुक अवसर फूर
पहिनहुसँ अभ्यासित व्यसनहुकेँ क्रमशः करबे पुनि दूर
पुण्य विचार भरिअ मनमे जे नहि पहिनेसँ रहय प्रवृत्त
सत्य नित्य की थिक तकरे रहि-रहि अन्वेषण करु चित वृत्त