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एंजलीना : ऐ-अरी-ओ मायाविनी / कुमार मुकुल

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परी की मानिंद
कभी प्रेतनी सी
अपनी हजारों तस्‍वीरों से
बारहा यह
किसे ताकती रहती हो
ऐ-अरी-ओ एंजलीना

जानता हूं
के किसी ईश्‍वर पर
विश्‍वास नहीं तुझे
फिर यह ईश्‍वर से
इतने रहस्‍यमय रूप
क्‍यों धरती रहती हो

पल-क्षिण बदलती बदली से
विस्‍फारित नेत्रों के साथ
चौड़े होते तुम्‍हारे होंठ
जब खुलते हैं
तो कैसे स्‍वतंत्र
अलग ईकाई से
कुछ कहते महसूस होते हैं

कैसी बेचैनी है यह
जिसे तुमसे स्‍वतंत्रता की मांग करती सी
तुम्‍हारी भौंहें, हाेंठ और आंखें
कह नहीं पातीं खुलकर
जिन्‍हे प्रकट करने के दबाव में
बनती चली जाती हो तुम
मायाविनी

अपनी पीठ पर
गुदवा रखा है तूने
'नो योर राइटस'
और जाने किन भाषाओं में
और क्‍या-क्‍या

क्‍या है यह
के तुम्‍हारी पीठ अगर
नहीं दिखती तुम्‍हे
तो तुम उसे पोस्‍टर में बदल डालोगी
आखिर उसे भ्‍ाी
अपने होठों, आंखों व भौं की तरह
स्‍वतंत्र
कुछ कहने के अधिकार से
वंचित क्‍यों कर रही तुम

और यह इंस्‍टागांव पर
कैसी तस्‍वीर डाल रखी है तूने

किसी पुरूष के हाथ
तुम्‍हारे वक्षो पर हैं
और उससे उठती गुदगुदी
तुम्‍हारी हंसी में प्रकट हो रही

माफ करना
ऐसी उत्‍तेजक मुद्राओं को
वैश्विक करना भी
क्‍या अधिकारों की अभिव्‍यकित है

इस विश्‍व गुरूघंटालों के इस देश के
अदना से इस नागरिक को
यह बात कभी समझ नहीं आएगी

हालांकि अपनी प्रियंका और कंगना भी
तुम्‍हारी राह पर हैं
पर हमारी सरकारी संस्‍कृति
इससे इत्‍तेफाक नहीं रखती

यूं हमारे प्रधान जी की
उनके साथ तस्‍वीरें खिंचाने से
शान में खलल नहीं पड़ता

पर संस्‍कृति का मसला उठते ही
हम धृतराष्‍ट्र हो जाते हैं

फिर वंदेमातरम
कब डंडेमातरम हो जाता है
पता नहीं चलता

पर तुम्‍हारी माया शक्ति के आगे
मैं भी हथियार डालता हूं
और मन से मुदित होते हुए
खुलकर श्राप देता हूं

कि जब तू मरे
तो ऐसी ही
दांत चियारे (हंसते) मरे।