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एकटा नवका कठोपनिषद / मन्त्रेश्वर झा

पढ़ने होयब अपनहुँ
संभव
वा सुनने होयब ओ खीसा
नचिकेताके प्रश्न चमक लग
प्रश्न नेनपनक प्रश्न मृत्युके
बाजश्रवाक त्यागके वर्णन
स्वर्ग कामना के उत्पीड़न
नचिकेता पर श्राप तामसी
नहि पढ़ने छी तऽ से छोडू-
सुनने तऽ होयब जे
की अछि कथा उपनिषद्
कठोपनिषद् वा जे किछु हो ओ।
हमहूँ पढ़लहुँ, गुनलहुँ धनलहुँ
बुझल कते, से आइ कहै छी।
अपने कवि छी
दर्शक-श्रोता, सुधी समीक्षक
वेतनधारी, बेंत प्रहारी
शोषित दलित कतहुसँ पीड़ित
वा जे किछु छी।
हम आ अहाँ कतहु कोम्हरो सँ
नचिकेता नहि, वाजश्रवा सेहो नहिये छी
यम समदर्शी योगी ज्ञानी तऽ नहियें छी।
ओ जे कहलनि
त्याग, नम्रता आ उदारता संग
यज्ञ जे अग्निक करइछ
ब्रह्म वैह छी
से छी ब्राह्मण
यम से कहलनि नचिकेता के
जे अछि ब्राह्मण
से नहि होइछ पीड़ित, मोहित
सुख वा दुख सँ
मृत्यु पड़ाइछ ओकरा मुख सँ
नचिकेता सन्तुष्ट भेला नहि
पुछलनि यम के-
मृत्यु पाबि नर
रहइछ वा नहि
होइछ वा नहि
करइत अछि एक्जिस्ट
कि नहि ओ कहू बुझा के।
नचिकेता के कोनो प्रलोभन डिगा ने सकलनि
जल थल नभ के
राजपाट के, ठाठ बाट के
सुख वैभव ऐश्वर्य प्रसादक
पुत्र पौत्र के, दीर्घ जीवनक
मूल प्रश्न बस एक हुनक छल
मृत्यु बाद क्यो रहइछ वा नहि
करइत अछि एक्जिस्ट कि नहि ओ
की होइत अछि?
मृत्यु जीवनक मूल प्रश्न अछि
सभ जीवन के, सभ दर्शन के
भाषण के नहि, राज्यक नहि ओ
न्याय अलग हो, जकर तकर नहि
ज्ञान आर विज्ञानक
होइछ अलगे ढाठी
राजनीति तऽ भरल उकाठी।
अहाँ कहब हम बहकल की की बात करै छी
ई की कविता?
बहकब तऽ होइछ कवि कर्मे
भाव स्वभावे
छन्द ओकर स्वच्छन्द बनब छी।
अस्तु जिद्द पर अड़ले रहला
प्रश्नक उत्तर पर नचिकेता
मृत्यु कथी छी?
की होइछ क्यो मृत्यु पाबि के?
बजला यम जे प्रश्न
देवतो सभ नहि बुझलनि
बुझब कहाँ सँ
उत्तर जकर सहज असहज अछि
जन्म मृत्यु जे एक
बुझै अछि
से नहि जन्मय
ने मरैत अछि
ज्ञान कर्म जे क्यो
बुझैत अछि नाटक अभिनय
नियत नियति के
जे करैत अछि रोल नियत
अभिनय प्रेक्षागृह
अपन जीवनक जानि बूझिके
साक्षी भावे, दर्शक भए जे देखय
सुनय गारि अभिनन्दन सभ किछु, असंपृक्त भए
बस केवल अभिनय के खातिर
ओकर नियत जे,
बुझइछ नहि अभिनय के अप्पन
मृत्यु बनय अभिनय के हिस्सा
जहिना जीवन
से रहइछ ओहिना दर्पण सन
स्वच्छ परम निर्मल रहि जाइछ
बुझइछ नहि प्रतिबिंब स्वयं के।
जहिना क्यों यात्री गाड़ी पर
ठाम ठाम के स्टेशन
कें नहि बुझइछ जे से हमही छी
यात्रा चलय जीवनक तहिना
अभिनेता के नव नव अभिनय
रावण आइ काल्हि के लक्ष्मण
स्वयं रहै अछि अलग
तेना ओ
से छी आत्मन्, से छी ब्राह्मण
ब्रह्म ज्ञान बस आर किच्दु नहि
अहाँ स्वयं से जानि चुकल छी
देखि चुकल छी, कयने छी आहूति स्वयं के
जे कबीर भए हाथ लुकाठी
जरा चुकल अछि अपन अहम् के
भष्म केलक जे स्वयं अपन घर
जे बुझैत अछि जे
हम छी ने नायक सता
बनय अमर से
मृत्यु करत की तकर
तखन बाजू नचिकेता
जेना आगि बनि जाइछ
तेहने जरबय जकरा,
तहिना आत्मन्
रूप करै अछि विविध
मुदा रहि जाइछ निर्मल धवल नवल नित
जेना सूर्य मे दाग ने लागय पाप पुण्य के
ब्रह्म तेना रहइछ सबहक
अन्तर मे अक्षुण्ण, झाँपल तोपल
मृत्यु करत की तकर
योग छै जकर परम सँ
मरइत अछि बस भोगी
सुख हो अथवा दुख हो
मुदा मृत्यु की करत
रहय जे सदिखन योगी
हम पुछैत छी कवि गण
श्रोता पंडित ज्ञानी
अपने सभ, हम ओ ओ सभ क्यो
बनल आब छी नचिकेता सन
मृत्युक सभक तत्तेलगीच अछि
मरय पड़ोसी, पथिक, तपस्वी
साधक, सेठ, बृद्ध, बनिता
आ बालक, जलचर
जकरा जे फुरैछ करइत अछि
मारि रहल अछि जे से
नित दिन जकरा तकरा
तखन कथीके लोभ बचल अछि
बचल कोन अछि मोहक बंधन
बाजू, बाजू
किए आइयो नहि छी निर्भय
किए आइयो मृत्युक डरसँ
सुटकि रहल छी, गटकि रहल छी विक्ख!
मृत्यु जखन आसन्न निकट अछि
किए अपन आहूति
एखनियो नुका रहल छी
की पापक आहूति चढ़ब
से कयलहुँ निश्चय
जे दुनिया अछि, जे समाज अछि
टुकुर टुकुर तकने की होयत
की अकाल मृत्युक टा
बैसल बाट तकै छी
भटिक रहल छी जीवित
भटकब मृत्यु बाद तक
डाहि अहम् के स्वयं करब
मंजूर किए नहि?