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एकता / रामकृष्ण

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देखऽ तो पुरखा-पुरनिआँ के सपनाएल
कुच-कुच हरिअर गीत
करमी के लत्तर निअन
केतना लहस क पसरल हे!

अहरा के पानी पर
अगरा के बोलल बात निअन।
काहे एकर अरथ?
को होएत-के जाने
बाकी
भित्ती-पाखा में
ओठगल/साटल
पिढ़िआ आउ सेनुर के कीआ
लाल रेसमिआ दूगो चूड़ी के बात
माँगे-कोखे असराएल
असरा तो हे।

एही दिन ला न?
हाँ, एही दिन ला
भाई के जुआनी
भउजी के माँग, अभरन
आउ माय के कोख
अरप देली हल -
बड़की माय (धरती) के अँचरा में।

कि उ हथ सब के माय
कोई मुसके आ ऊ माय सिसके!
टोला-टाटी के जुड़ाएल हिरदा
जखनी टिटकारी मार कुरचऽ हे
हमरो मन के कसल तार
मल्हारे पर उतरऽ हे।
खेत खरिहान से लेके
हवा गाड़ी तक
पढुआ-पंडित से अनपढ़-अनाड़ीतक
बूझे के हे एक्के बात
पानी होवऽ हे पानी
आग न ऽ
अप्पन गाँव, सहर, देस
मुदा समाज के
एक्के गो बात चाही
भले, राग/सुर/लय/ताल
अनगिन होए।
ऊ हे-
एकता...
एकतस...
एकता।