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एकाकीपन के बीस अरब प्रकाशवर्ष / शुन्तारो तानीकावा / अशोक पाण्डे

छोटे-से ग्लोब में मानव सभ्यता
सोती है, जागती है और काम करती रहती है
कभी चाहती हुई मंगलग्रह के साथ दोस्ती करना

मंगलवासी छोटे-से ग्लोब में
और शायद कुछ करते हुए, पता नहीं क्या
(शायद सोना-सोते हुए, पहनना-पहनते हुए, हड़बड़ी-हड़बड़ाते हुए)
कभी चाहते हुए पृथ्वी के साथ दोस्ती करना
मैं निश्चित हूं उस तथ्य को लेकर

यह चीज़ जिसे हम कहते हैं सार्वत्रिक गुरुत्व
अकेलेपन की शक्ति है चीज़ों को इकट्ठा करती हुई

ब्रह्माण्ड की आकृति बिगड़ी हुई है
इसलिए सब जुड़ते हैं इच्छा में

ब्रह्माण्ड फैलता जाता है लगातार
इसलिए सारे महसूस करते हैं बेचैनी

बीस अरब प्रकाशवर्षों के अकेलेपन पर
बिना सोचते हुए, मैं छींका !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे