भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एकाकीपन / रैनेर मरिया रिल्के

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एकाकीपन है बारिश की तरह
बढ़ जाता है समुद्र से यह संध्या के समय
दूर दराज के स्तरों से
जाता है आकाश की ओर, जो हमेशा पास है इसके
और गिरता है आकाश से यह शहर पर ।

झुरमुट के समय बरसता है यह हम पर
जब सुबह के बाद करती हैं सड़कें मिलन
और जब पाती नहीं काया कुछ भी
तब छोड़ जाता है एक दूसरे को निराश और दुखी

और जब एक दूसरे से नफ़रत करने वालों को
सोना पड़ता है एक ही बिस्तर में साथ
तो बह जाता है एकाकीपन नदियों के साथ ।।

मूल जर्मन से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय