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एकान्त / डी० एच० लारेंस

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»  एकान्त

लोग अकेलेपन की शिकायत करते हैं ।
मैं समझ नहीं पाता ,
वे किस बात से डरते हैं ।

अकेलापन तो जीवन का चरम आनन्द है ।
जो हैं निःसंग,
सोचो तो, वही स्वच्छंद है ।

अकेला होने पर जगते हैं विचार;
ऊपर आती है उठकर
अंधकार से नीली झंकार ।

जो है अकेला,
करता है अपना छोटा-मोटा काम,
या लेता हुआ आराम,
झाँक कर देखता है आगे की राह को,
पहुँच से बाहर की दुनिया अथाह को;

तत्वों के केन्द्र-बिन्दु से होकर एकतान
बिना किसी बाधा के करता है ध्यान
विषम के बीच छिपे सम का,
अपने उदगम का ।


अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : रामधारी सिंह 'दिनकर'