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एक-से-एक बढ़कर चले / गुलाब खंडेलवाल


एक-से-एक बढ़कर चले
सब लुटे राह में क़ाफ़ले

प्यार ऐसे ही होता कभी
जैसे दीपक से दीपक जले

एक दिल भी धड़कता रहा
चाँदनी के हिँडोलों तले

कोई आँखें मिलाता नहीं
आ गए हम कहाँ दिन ढले!

तुम अभी तो खिले थे, गुलाब!
रंग दम भर में क्यों उड़ चले!