एक अर्पण / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी
और वे हाथ अधिक मज़बूत थे मेरे हाथों से
जो खोदते थे इस धरती से वह रूबी
अधिक चतुर थे उनके दिमाग जिन्होंने बनाया उसे
एक राजा की सबसे बड़ी कामना
और अधिक बहादुर थे वे दिल जो नमकीन पानी
में घुस जाते थे लाने के लिए उत्तम मोती
देखो, मैंने मिट्टी में गढ़े हैं
एक खुरदुरी सी पीढ़ी के खुरदुरे रूप
क्योंकि मोती का विस्तार नहीं है
मेरे इस निर्वासन के कस्बे के बाज़ार में,
जहाँ ढुलमुल मिट्टी के साथ मैं खेलता हूँ
और खाता हूँ असंतुष्टि की रोटी
तथापि उसमें जीवन है जो मैं बनाता हूँ
ओ कि तुम जो जानते हो, पलटो और देखो―
जैसे तुम रखते हो मुझ पर वश
ऐसे ही मेरा वश है इन पर
क्योंकि मैंने गढ़ा है उन्हें तुम्हारे लिए
और साँसें डाली हैं उनमें अपनी वेदना की
छोटी सी ख़ुशी मिली उन्हें बनाने के दौरान― अब
मैं उठा रहा हूँ यह कपड़ा जो ढँके है इस मिट्टी को
और थका हुआ, पेश करता हूँ तुम्हारे चरणों पर
मेरे असबाब, इससे पहले कि मैं जाऊँ बेचने.
वह बड़ा बाज़ार सराहेगा, पर तुम―
मेरे हृदय के हृदय― क्या मैंने अच्छा बनाया है??