एक आदिम ईश्वर की हत्या / कुमार विकल
मैने सोचा था एक छोटे— से घर में
साधारण आकांक्षाओं के बीच
ज़िन्दगी गुज़ार दूँगा.
और उस आदमी की हत्या के बारे में भूल जाऊँगा
जो मैंने की तो नहीं
किंतु एक अपराध भावना से पीड़ित हूँ—
कि शायद उस हत्या में मेरा भी कहीं हाथ था.
वह आदमी कौन था, मैं नहीं जानता
किंतु उसकी प्रेतात्मा ने
मेरे विरुद्ध एक षडयंत्र रचा हुआ है
मेरे घर को भुतैला खंडहर बना दिया है
मेरी आकांक्षाओं पर प्रेतों के चेहरे लगा दिये हैं.
और जब कभी सोते में
एक खुरदरी हथेली के दबाव से जाग ऊठता हूँ
तो एक क्षण के लिए महसूस होता है
कि वेगवती काली नदी के अभाव में
मेरा शरीर डूबता जा रहा है.
मैं— जैसे कोई अशरीरी अस्तित्व
अंधे जल की गहराई से बुदबुदाता हूँ
और अपनी समूची जिजिविषा को
साक्षी मान कर कहता हूँ
कि अपनी चेतन अवस्था में
मैने कोई हत्या नहीं की
हाँ ,कभी मेरे किसी पूर्वज ने
एक आदिम ईश्वर की हत्या ज़रूर की थी.