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एक आवाज़ सो गई है अभी / प्रेमरंजन अनिमेष

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जगजीत सिंह के जाने के बाद

एक आवाज़ सो गई है अभी
ख़ल्‍क़ ख़ामोश हो गई है अभी

कोई वीरानी हर तरफ़ जैसे
रूह हर शै से खो गई है अभी

ज़िन्दगी थी हाँ ज़िन्दगी थी वही
अपने भीतर से जो गई है अभी

धूप में हल्की-हल्की-सी बारिश
आसमानों को धो गई है अभी

दर्द जो शहद से भी है गाढ़ा
याद पहली समो गई है अभी

साँझ कैसी धुआँ-धुआँ-सी है
रोशनी दर पे रो गई है अभी

नींद इन सूनी-सूनी आँखों में
टूटे सपने पिरो गई है अभी

रोशनाई से लिक्खे हर्फ़ों को
इक सियाही डुबो गई है अभी

रास्ते में कहीं मिले शायद
बेबसी देख लो गई है अभी

एक पल पहले थी नज़र रह पर
आस भी हो न हो गई है अभी

आँख खुलते ही इक किरण पहले
सच की किरचें चुभो गई है अभी

फूल ख़ुशबू के ख़ाली दामन में
फिर मुहब्बत सँजो गई है अभी

सुबह तक जागता रहूँ 'अनिमेष'
रात पलकें भिगो गई है अभी