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एक आवारा कवि / भारत यायावर

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कृष्ण कल्पित के लिए

बदल जाता है बहुत कुछ धीरे-धीरे
बदल जाते हैं मिलने वाले
बदल-बदल जाते हैं रास्ते और मंज़िलें
अपने एहसास और चेहरे कितने
फिर भी कुछ लोग
छुपे होते हैं मन के भीतर
वे कभी ताक-झाँक किया करते हैं

हम जाते हैं
अपने से दूर कहीं
पास आते हैं
मुलाक़ात किया करते हैं
कृष्ण कल्पित
ऐसा ही है एक यादगार इनसान !

कृष्ण कल्पित
है एक जादुई स्पर्श
एक धुँधलके में अनपहचाना हुआ खूबसूरत चेहरा
एक भावुक
निराला
मतवाला कवि

कुछ आवारा-सा
कुछ मसीहा-सा
धुन्ध और धुन में समाहित
चेतना का ओजस्वी स्वर
एक निष्कपट इनसानियत की लौ
अन्धेरे और उजाले का मध्य
राँची, पटना, इलाहाबाद, दिल्ली
और जयपुर का सुनहरा प्रभात

कविता का भास्वर उदगार
कबीर और मीरा की उदात्त मानवीय सम्वेदना
खुसरो, मीर और ग़ालिब की
पीर भरी सूफ़ियाना आवाज़

कृष्ण कल्पित को
यादों में बसा रखा है
पर वह भटकता ही रहता है
मेरी नज़रों के सामने से गुज़रता चला जाता है
राग से भरा
रहता है गतिमान
दिल को छूता है वह
कोमल और मासूम कवि

वह गंजेड़ी
शराबी
पागल
जो भी है
कविता में बसती हैं उसकी सांसें
उसकी धमनियों में
बहता है संगीत का प्रवाह
उसके दिमाग में
करकती रहती है
अनलिखी कोई पँक्ति

वह हरदम-हरदम
एक रचाव लिए जीता है
वह रहता है बेचैन सदा
लिखने को
कोई अनोखी कविता
पल-पल छटपटाता है

वह चाहता है लिखना
कोई ऐसी ग़ज़ल
जिसमें हिन्दी कविता का सार हो
और उर्दू का अंदाज़ हो

कृष्ण कल्पित
अभी सफ़र पर है
चलता ही रहा है अबतक
अपनी अस्मिता को कविता में
समाहित कर
चलता रहे
जिस्म के खो जाने तक
चलता ही रहे

कृष्ण कल्पित से मिले
एक अरसा हो गया है
वह कहीं अपने ही भीतर से निकलकर
हर दिन ताक-झाँक किया करता है ।