शोकगीतों के समय में
एक उत्सव-गीत लिखकर
ख़ुश हुआ मन !
एक अँधियारा हुआ सुख
अजनबीपन
देह पर अपनी
न चाहा स्पर्श-सा कुछ
गीत आदिम चाहता मन
और जीवन
हो रहा मुश्किल
‘कथन-निष्कर्ष’-सा कुछ
प्रश्न-गीतों के समय में
एक उत्तर-गीत लिखकर
कुछ हुआ मन !
एक सीमा
एक निजता-सामूहिकता
लोग अब ज़्यादा सहज हैं
पक्ष बनकर
हर असहमति के लिए
है प्रति-असहमति
हाथ में लेकर खड़ी
पिस्तौल-पत्थर
युद्ध-गीतों के समय में
एक सहमति-गीत लिखकर
चुप हुआ मन !