भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक उदास धुन वाॅयलिन पर / रूचि भल्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जबकि फाॅनटेनेन्स रोड पर
आसमान चूमता गिरजा खड़ा है
तुम्हारे घर के सामने
लाल ईंटों से सजा कुँआ है
मुहाने पर जिसके बैठी है
क्रिस्टी बिल्ली
लक्ष्मी निवास के चौरे में
सजी तुलसी लहक रही है
पेड़ पर टंगा कंदील झूम रहा है
सड़क पर टहलती मारिया की
स्कर्ट पर खिले हुए हैं अगस्टा के फूल
चाँद की नाव तैर रही है
तुम्हारे शहर के समन्दर में
तली हुई मैकरिल मछली महक रही है
घर के बगल वाली रसोई में
लिबरीला बेच रही है चाय
सड़क के आखिरी छोर पर
हैट लगाए डेविड के हाथों में
जल रहा है सिगार
और तुम हो कि सबसे बेखबर
घर की खिड़की पर खड़े हो
सदियों पुरानी उदासी के साथ
सदियों पुराने वाॅयलिन पर
जमी मिट्टी को झाड़ते हो
रगड़ते हो उसे चमकाते हो
खुद बरसों से नहाए नहीं हो तुम
तुम्हारे घर का दरवाजा हरदम खुला रहता है
दो कुर्सियाँ एक अदद मेज
दीवार पर टंगी धुँधली तस्वीरों को
तुमने कबसे नहीं देखा है
क्या कभी निकले हो घर से बाहर
क्या तुम्हें याद है घर के भीतर
जाने का रास्ता
ऐसा क्या है तुम्हारे इस वायलिन में
कि इसके सिवा तुम्हें कुछ दिखता नहीं
सुनो ! मेरी तरफ देखो
आओ! मैं सिल दूँ तुम्हारा फटा हुआ कोट
मैं सिलूँगी और तुम वाॅयलिन बजाना
क्या तुम्हें याद है वाॅयलिन की वह धुन
जो तुम बजाते थे मार्था के लिए
या उस धुन को भी भूल गए हो
जैसे भूल गए हो अपना नाम
सब कुछ भुला देने की धुन में