भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक ऐसे समय में / रवि कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक ऐसे समय में
जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है
और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है
एक ऐसे समय में
जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है
और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है
और भविष्य अनिश्चित और असुरक्षित दिख रहा है
एक ऐसे समय में
जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है
और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है
एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है
एक ऐसे समय में
जब सिद्ध किया जा रहा है
कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है
कि इस रात की कोई सुबह नहीं
और मुर्गों की बांगों की गूंज भी
लगातार माहौल को खदबदा रही हैं
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है
जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए