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एक कहानी कहती थी मैं / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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एक कहानी कहती थी मैं
तुम बड़े प्यार से सुनते थे
उसके किरदारों में से फिर
तुम अपना किस्सा चुनते थे

हँसते थे तुम किसी बात पर
तो किसी बात पर रोते थे
जिक्र इश्क़ का आता था जब
तो राँझा भी तुम होते थे
मेरे संग तब तुम भी जैसे
फिर कड़ी-कड़ी को बुनते थे

बड़ी सुहानी लगती थी, जब
साँझ के संग तुम आते थे
अनजाना था अब तक मुझसे
उस प्यार के नग़मे गाते थे
जो पूछूँ क्या गाया पहले भी?
तुम कितना जलते-भुनते थे

अब तो कहानी हम ही बन गए
क्या ख़ूब कहो तुम खेल गए
बीत गए वो लम्हे प्यार के
वो दिन औ' रात के मेल गए
मैं ही कमली समझ ना पाई
तुम मन ही मन जो गुनते थे

एक कहानी कहती थी मैं
तुम बड़े प्यार से सुनते थे..