एक कुत्ता अपनी पूँछ रात के अन्धेरे में छिपाता है / अशूरा एतवेबी / राजेश चन्द्र
अपने गाँव, एटवेबिया में
गिलास में बची हुई शराब की आख़िरी बून्द में
मैं उस पेड़ को देखता हूँ
जिसे मेहमानख़ाने के बाहर लगाया था मैंने
मैं देखता हूँ उसके पीले फूलों को सर्दियों में खिलते हुए
जहाँ बैठता रहा हूँ मैं लाल वक्ष वाली चिड़िया के साथ
अपना गिलास मैं ठण्डा कर पीता हूँ,
जिस तरह मुझे पसन्द है
और वह मूँगफली लेती है मेरी टोपी से
जैसे उसे पसन्द है
आह, मेरे पेड़, मेरे शीतकालीन पेड़
आह, मेरा एतवेबिया, जिसे कब्ज़ा लिया है रक्षा-बलों ने
मैं ख़ूब आनन्द लिया करता था घनघोर बारिश का
प्यासी रेत पर झमाझम बरसते सुनता था उसे
आज उस देश में, जिसे तबाह कर डाला है मौत ने
बारिश ने खो दिया है अपना संगीत
बून्दें उदासी में लिपटी हैं, गिरती हैं, गिरती हैं निस्तब्ध
एक कुत्ता अपनी पूँछ रात के अन्धेरे में छिपाता है
पानी ऊपर चढ़ता है
जैतून का पेड़ सुनता है कान लगाकर
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र