भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक खरिका केरा माड़ब, बाबा छाओल सभ रँग / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी को उदास देखकर पिता ने उदासी का कारण पूछा। बेटी ने कहा- ‘आपसे एक चूक हो गई है। मैं तो गोरी हूँ लेकिन, आपने मेरे लिए साँवले वर को ढूँढ़ा है।’ पिता ने बेटी के इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही सुंदर ढंग से दिया। उसने कहा- ‘बेटी, तुम्हारी माँ होशियार है। उसने तुम्हें तेल-फुलेल लगाकर छाया में सुलाया। लेकिन दुलहे की माँ फूहड़ है। उसने अपने लड़के को सरसों का तेल लगाकर धूप में सुलाया, इसलिए वह काला हो गया। इसके अतिरिक्त तुम्हें साँवले रंग के विषय में ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि स्वयं श्रीराम साँवले थे।’

इस उक्ति से पिता जहाँ लड़के की माँ के फूहड़पन का वर्णन करके बेटी को संतोष दे रहा है, वहाँ श्रीराम का उल्लेख करके बेटी के हृदय में दुलहे के प्रति आदर का भाव भरने की कोशिश भी कर रहा है।

एक खरिका<ref>तिनका; खढ़</ref> केरा माड़ब, बाबा छाओल सभ रँग बाँस<ref>सभी रंगों में बाँसको रंगकर; रंगीन वासस्थान; कोहबर</ref>।
माड़ब भल सोभित हे॥1॥
खँम्हा लागल दुलारी बेटी, बेटी मनहिं मन पछतावे।
कि अब मन बेदिल हे॥2॥
घर सेॅ बाहर भेल अपन बाबा, किए बेटी दान दहेज थोड़।
बेटी किए तोर भेल अपमान, किए रे मन बेदिल हे॥3॥
नहिं बाबा दान दहेज थोड़, बाबा नहिं भेल मोर अपमान,
नहिं रे मन बेदिल हे॥4॥
एक बचन तोहें चूकल, बाबा हम रे गोरिल<ref>गौर वर्ण की</ref>, साँबर कौने मेराबल<ref>मिला दिया</ref> हे॥5॥
तोहरि मैया बेटी चतुरी, बेटी लगबै तेल फूलेल।
कि छहरी<ref>छाया में</ref> सुताबल, तेॅ बेटी गोरिल हे॥6॥
बर के मैया बेटी फूहरि, बेटी लगबै सरिसब<ref>सरसों; एक तेलहन</ref> के तेल।
कि रौदे<ref>धूप में</ref> सुताबल, तेॅ बेटी साँवर हे॥7॥
साँवर साँवर जनि बोलु बेटी, साँवर सरब सोहाबन,
बेटी राम मेराबल हे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>