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एक ख़्वाहिश / बशर नवाज़
Kavita Kosh से
अब की बार मिलो जब मुझ से
पहली और बस आख़िरी बार
हँस कर मिलना
प्यार भरी नज़रों से तकना
ऐसे मिलना
जैसे अज़ल से
मेरे लिए तुम सरगर्दां थे
बहर था मैं तुम मौज-ए-रवाँ थे
पहली और बस आख़िरी बार
ऐसे मिलना
जैसे तुम ख़ुद मुझ पे फ़िदा हो
जैसे मुजस्सम मेहर-ए-वफ़ा हो
जैसे बुत हो तुम न ख़ुदा हो