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एक ख्वाहिश / अमृता सिन्हा
Kavita Kosh से
कभी कभी कुछ दूरियाँ अच्छी होती हैं,
जैसे आँखों से काजल की दूरी
कढ़ाही से करछी की दूरी
लेखक की कलम से दूरी
रचनाकार की रचनात्मकता से दूरी
प्रेमी की प्रेम से दूरी
अंतर्मन की गहराई में उतरने की ख़ातिर
बाहरी दुनियाँ से दूरी, सोंशल मीडिया से अवकाश
बाहरी कोलाहल से अलग-थलग
बनायी जाये कुछ दिनों की दूरी
रहा जाए एकदम ख़ामोश
बनाया जाये चुप्पियों का पहाड़
बिताया जाये कुछ दिन, मन की
चंचल फुदकती
गिलहरियों के साथ।
सारी दुनियाँ की क़तर-व्योंत से दूर
सिर्फ और सिर्फ मैं रहूँ
और रहे
सिर्फ़ अपना ख़्वाब।