एक ग़ैर-दुनियादार शख़्स की मृत्यु पर एक संक्षिप्त विवरण / संध्या गुप्ता
एक विडम्बना ही है और इसे ग़ैर-दुनियादारी ही कहा जाना चाहिए
जब शहर में हत्याओं का दौर था.....उसके चेहरे पर शिकन नहीं थी
रातें हिंसक हो गई थीं और वह चैन से सोता देखा गया
यह वह समय था जब किसी भी दुकान का शटर
उठाया जा रहा था आधी रात को और हाथ
असहाय मालूम पड़ते थे
सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष उसके जीवन का यह है कि वह
बोलता हुआ कम देखा गया था
“ दुनिया में किसी की उपस्थिति का कोई ख़ास
महत्व नहीं ”-
एक दिन चौराहे पर
कुछ भिन्नाई हुई मनोदशा में बक़ता पाया गया था
उसकी दिनचर्या अपनी रहस्यमयता की वज़ह से अबूझ
क़िस्म की थी लेकिन वह पिछले दिनों अपनी
ख़राब हो गई बिजली और कई रोज़ से ख़राब पड़े
सामने के हैण्डपम्प के लिये चिन्तित देखा गया था
उसे पुलिस की गाड़ी में बजने वाले सायरनों का ख़ौफ़
नहीं था...मदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने में भी उसकी
दिलचस्पी कभी देखी नहीं गई
राजनीति पर चर्चा वह कामचोरों का शगल मानता था
यहाँ तक कि इन्दिरा गाँधी के बेटे की हुई मृत्यु को वह
विमान दुघर्टना की वज़ह में बदल कर नही देखता था
अपनी मौत मरेंगे सब !!!
उस अकेले और ग़ैर-दुनियादार शख़्स की राय थी
जब एक दिन तेज़ बारिश हो रही थी
बच्चे, जवान शहर से कुछ बाहर एक उलट गई बस को
देखने के लिये छतरी लिए भाग रहे थे
वह अकेला और
जिसे ग़ैर-दुनियादार कहा गया था,
शख़्स इसी बीच रात के तीसरे पहर को मर गया
तीन दिन पहले उसकी बिजली ठीक हो गई थी
और जैसा कि निश्चित ही था कि घर के सामने वाले
हैण्डपम्प को दो या तीन दिनों के भीतर
विभागवाले ठीक कर जाते
उस अकेले और गैर दुनियादार शख़्स का भी
मन्तव्य था कि मृत्यु किसी का इन्तज़ार नहीं करती
पर जो निश्चित जैसा था और इस पर मुहल्लेवालों की
बात भी सच निकली
उसका शव बहुत कठिन तरीके से
और मोड़ कर उसके दरवाजे़ के बाद की
सँकरी गली से निकला !