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एक घनाक्षरी / पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

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सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में
खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं ।
लाल उसे खाते तो यम को लजाते
और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं ।
रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ
खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं ।
सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास
और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं ।

(प्रेमा, अप्रैल 1931 में प्रकाशित)