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एक चपाती / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
ताती-ताती एक चपाती
दिखी तवे पे पेट फूलती
बिल्ली मौसी बोली— ‘म्याऊँ!
भूख लगी, मैं तुझको खाऊँ!’
सुनकर उछली दूर चपाती,
बोली फिर आँखें मटकाती—
‘मौसी पहले मक्खन ला,
फिर चाहे मुझको खा जा।’
देख चपाती के ठनगन,
बिल्ली ले आयी मक्खन,
गुर्राकर फिर बोली-- 'म्याऊँ!
अब तो मैं तुझको खा जाऊँ?’
सुनकर उछली दूर चपाती,
बोली फिर आँखें मटकाती—
‘हाँ, हाँ पहले गुड़ तो ला।
फिर चाहे मुझको खा जा।’
बिल्ली चल दी गुड़ लाने,
लगी लौटकर झुँझलाने।
‘म्याऊँ! म्याऊँ! म्याऊँ! म्याऊँ!
अब मैं खाऊँ! अब मैं खाऊँ!’
मन-ही-मन में डरी चपाती,
सोचा— ‘अब तो मरी चपाती।’
चिढ़कर बोली-- ‘खा नकटी।’
बिल्ली ग़ुस्से में झपटी।
खा ली चप-चप चप्प चपाती।
हप्प चपाती गप्प चपाती।